Part 1
हॉट सेक्स गाँव की भाभी के साथ मैंने तब किया जब मैं सरकारी काम से एक महीने के लिए एक गाँव में गया था. वहां मैंने कई चूतों का मजा लिया.मैं आज फिर एक नई सेक्स कहानी लेकर हाजिर हुआ हूँ.
यह सेक्स कहानी मेरे एक दोस्त की है, जिसे मैं अपनी कलम से लिख रहा हूँ.
दोस्तो, मुझे कुछ काम से एक छोटे से गांव में जाना पड़ा. गांव की हवा, रहन-सहन मुझे काफी अच्छा लगता है.
गांव की खुशबू गांव का नजारा … आह यह सब देख कर मैं मोहित हो जाता हूँ.
ऐसे ही एक गांव में मैं पहुंच गया.
अगले एक माह तक मुझे वहीं रहना था.
मैंने गांव के मुखिया से बात की, उन्हें समझाया कि मैं सरकारी काम से आया हूँ. गांव के हर एक आदमी से मुझे मिलना होगा और एक महीना मैं यहीं रुकूंगा, तो आप मेरी कुछ मदद कर दीजिए.
मुखिया ने अपने आदमी से कहकर एक मकान में मेरी रहने के व्यवस्था कर दी और खाने-पीने के लिए किसी एक घर में बोल दिया था.
जिस घर में मुझे रहने मिला था, उस घर में 3 लोग थे.
एक जोड़ा और उनका एक लड़का.
आदमी का नाम मनोज था. वह 45 साल का था.
उसकी औरत का नाम मंजरी था.
मंजरी 28 से 30 साल की उम्र की लगती थी.
वह देखने में बड़ी कमसिन माल लगती थी.
आप उसे गांव की धूप में सूखा हुआ फूल बोल सकते हैं.
पर उसके चूचे बेहद टाईट थे, एकदम मिसाईल की तरह खड़े.
उन दोनों का लड़का 5 साल का होगा.
मेरा कमरा ठीक था.
बगल में एक और फैमिली रहती थी.
उनके घर में मियां बीवी और दो बच्चे थे, एक लड़का था और एक लड़की थी.
मियां सूरज सिंह पहलवान किस्म का आदमी था.
वह 40 साल का होगा.
उसकी बीवी मीनाक्षी 34 या 35 साल की रही होगी.
पर क्या बदन की कसावट थी उसकी, मैं तो देखते ही रह गया.
वह भी मेरे देखने पर मुस्कुरा दी थी.
उसकी लड़की और लड़का दोनों ही अभी छोटे थे.
उन दोनों के घर से मेरे अच्छे संबंध हो गए थे.
मेरा काम सबकी जानकारी लेना था तो गांव के सब घरों में मैं बारी बारी से जाने लगा था.
किसी घर में आदमी थे, कहीं नहीं थे सिर्फ औरतें थीं.
मैं तो जहां सुंदर मुखड़ा दिखा, वहीं लाईन मारने लग जाता.
दो घर की औरतों पर मेरा जादू भी चला, घर पर कोई नहीं था तो उनको वहीं पेल दिया.
क्या कयामत माल थीं दोनों!
दोनों को दोनों बाजू से पेला. दोनों ने आंसू निकाले, पर ठुकाई नहीं रुकने दी. हॉट सेक्स गाँव की भाभी के साथ का मजा लिया मैंने.
अब मेरा जुगाड़ बन गया था तो मेरे दिन मस्ती में कट रहे थे.
एक दिन बच्चों के कारण मेरे पड़ोस की दोनों औरतें आपस में झगड़ पड़ीं.
उनके आदमी उस वक्त घर में नहीं थे, इस वजह से झगड़ा काफी बड़ा हो गया था.
दोनों औरतें एक दूसरे के बाल पकड़ कर एक दूसरे को मारने लगीं.
मैं वहां पहुंचा तो देखा कि सब मजा देख रहे थे.
कोई बीच-बचाव करने को नहीं आया.
मैं बीच में गया और दोनों को छुड़ाने लगा.
पर दोनों मानने को तैयार नहीं थीं, एक दूसरे के बाल पकड़े हुइ थीं.
मैंने दोनों के बीच में हाथ डाल कर अलग करना चाहा, पर दोनों नहीं हटीं.
मेरा हाथ उन दोनों के चूचों से रगड़ रहा था.
मेरे दिल में पहले ऐसा कुछ नहीं था.
पर बाद में मुझे अहसास हुआ कि मेरे दोनों हाथ उन दोनों के चूचों में लग रहे हैं.
अब मैंने जानबूझ कर उनका फायदा उठाया और झगड़ा छुड़ाने के नाम पर दोनों के दूध मसलता रहा.
एक को पेट पकड़ कर खींचना चाहा, तो खींचते हुए ही चूचे दबा देता और पीछे से भी मैं चिपक जाता.
उनके बीच में घुस गया तो दोनों के चूचे मेरे बदन पर रगड़ने लगे थे.
आखिरकार मैंने दोनों को अलग कर दिया और एक को पकड़ कर उसके घर ले गया.
उसे घर में बंद किया, फिर दूसरी को पकड़ कर उसे उसके घर ले गया.
ले जाते वक्त भी उसके चूचे दबाते हुए ही उसको ले गया था.
अब मैंने सबको बोल दिया- जाओ, सब लोग जाओ … सब शांत हो गया.
सब चले गए.
फिर मैं सबसे पहले मंजरी के घर गया.
उसका गुस्सा अभी उतरा नहीं था.
पर शायद उसका बदन दर्द कर रहा होगा.
मैंने उससे पूछा- क्या हुआ भाभी, झगड़ा कैसे हुआ?
तो वह रोने लगी.
मैंने उसे चुप करवाने के लिए उसको अपने गले से लगा लिया.
वह भी मुझसे चिपक कर रोने लगी.
उसका सर मेरे कंधे पर था.
मेरा एक हाथ उसके बालों में था तो दूसरा हाथ मैं उसकी कमर पर ले गया.
वह रोये जा रही थी.
मेरा एक हाथ उसके बालों को सहला रहा था और अपना दूसरा हाथ मैं भाभी की कमर पर चला रहा था.
मेरा औजार खड़ा होने लगा.
मैंने घर में नजरें घुमाईं तो घर में कोई नहीं था.
मेरा काम आसान हो गया.
मैं मंजरी से और ज्यादा चिपक गया.
मैंने उसे कसके अपने सीने से चिपका लिया.
वह भी किसी नादान लड़की की तरह सिमटती चली गयी.
मैंने महसूस किया कि उसकी सांसें गर्म हो गयी थीं.
उसे मेरा स्पर्श अच्छा लग रहा था.
मेरी बांहों में उसे अपनापन मिल रहा था.
उसने अपने दोनों हाथ मेरे बाजुओं के अन्दर से डाले और कँधे पर ले गयी.
मैंने कहा- चुप हो जाओ भाभी. मैं हूँ न यहाँ, आपको कुछ नहीं होने दूंगा. अगर वह आती है तो मैं उससे बात करूंगा. पर आप तक आने से पहले उसे मुझसे बात करनी होगी.
ऐसा कह कर मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी को अपनी बांहों में भर लिया और उसकी गर्दन पर अपनी गर्म सांसें छोड़ीं, तो वह मेरे साथ सिमट गयी.
मैंने उसकी गर्दन पर किस कर दिया.
वह मुझमें समाने लगी.
मैं लगातार किस करने लगा.
वह गर्दन नचाने लगी.
मैं अपना एक हाथ उसके चूतड़ों के ऊपर ले गया और साड़ी के ऊपर से ही चूतड़ सहलाने लगा.
वह कुछ नहीं बोली पर शायद वह मेरी मंशा जान गयी थी.
अब मैंने उसके बालों को पकड़ा और उन्हें खींचा ताकि भाभी का चेहरा मेरे सामने आए.
ऐसा करने से भाभी को दर्द तो हुआ पर मैंने तुरंत उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया और उसे चूसने लगा.
वह भी मेरा साथ दे रही थी.
आंखें बंद किए हुए ही उसने मुझे मानो चुदाई की दावत दे दी थी.
अब मैं बिंदास हो गया था.
फिर मैंने भाभी की कमर को दोनों हाथों में पकड़ लिया और उसे किस किए जा रहा था.
मैंने उसे अपनी बांहों में उठा लिया और घर के एक कोने में बिछी चारपायी पर ले जाकर आहिस्ता से रख दिया.
मैं भी उसके ऊपर झुक गया था.
मेरा किस करना जारी था.
अब मैंने दोनों हाथों से उसकी चोली के हुक खोले और उसके चूचों को आजाद कर दिया.
भाभी के नुकीले चूचे मुझे चिढ़ा रहे थे.
मैंने भी अपने दोनों हाथों से उन्हें पहले मसला, फिर बारी बारी उन्हें चूसने लगा.
एक निप्पल को चूसते हुए मैं खींचने लगा.
भाभी आह आह करने लगी.
अब मैं उसके चूचों को हाथों से दबाने लगा और अपना मुँह नीचे करके उसके नंगे सपाट पेट पर ले आया.
मैं भाभी की नाभि को चाटने लगा, अपनी जुबान नाभि के अन्दर डाल कर हिलाने लगा.
फिर मैंने एक हाथ से उसकी साड़ी खोलनी चाही. पर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.
मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने दरवाजे की तरफ इशारा कर दिया.
मैं भूल गया था कि दरवाजा मैंने बंद ही नहीं किया.
तब मैं झट से उठा और दरवाजे के पास गया, बाहर नजर दौड़ायी … सब सुनसान था. कहीं कोई नहीं दिख रहा था.
मैंने दरवाजा बंद किया और सिटकनी लगा दी.
अब मैं वापस भाभी के पास लौटा, वह अपनी चोली हाथ से पकड़ कर अपने चूचे छुपाने का प्रयास कर रही थी.
मैंने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए और अलग कर दिए.
इसके बाद मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया.
भाभी की आंखें बंद थीं.
मैं होंठों का रसपान किए जा रहा था.
अब तक मैंने भाभी की साड़ी व पेटीकोट को उतार दिया था.
भाभी ने चड्डी पहनी थी, पर फटी हुई थी.
मैंने उस भी उतार दिया.
वह अब पूरी तरह नंगी थी.
मैंने उसकी चूत को देखा तो कयामत लग रही थी.
चुत पर छोटे छोटे बाल ऐसे लग रहे थे, जैसे 3-4 दिन पहले ही साफ किए होंगे.
मैंने भाभी की चुत पर हाथ फेरा, वह तडप उठी.
तब मैंने हल्के से उसकी चुत की पंखुड़ियों को खोला.
आह क्या मस्त नजारा था … अन्दर गुलाबी दीवारों के साथ कामरस की खुशबू और चिकनाई थी.
मैंने पहले चुत की खुशबू ली, फिर अपनी जुबान को उस मखमली चुत में घुसा दी.
वह तड़प कर रह गयी.
मैंने जुबान को चुत के अन्दर जैसे ही हरकत देनी शुरू की, वैसे ही वह छटपटाने लगी.
मैं चुत चाटने में लगा रहा, अपनी जुबान को गांड के छेद से चुत के छेद तक फेरने लगा.
वह वासना के आधीन होकर आंखें बंद किए मंद मंद मुस्कुराने लगी, अपने दांतों से अपने होंठों को चबाने लगी, मुट्ठी बंद करके वह अपने अंतर्मन की छुवन का मजा ले रही थी.
मैं चुत में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था.
तभी वह थरथराने लगी, उसने मेरे सर को अपनी चुत पर जोर से दबाया और ‘अअह अअह्ह …’ की आवाज निकाल कर झड़ने लगी.
उसका यौन रस मेरे मुँह में आ गया.
मैं उसको चाट गया.
कुछ देर बाद वह शांत हुई.
उसने अपने आप पर काबू पाया.
पर मैं फिर जुबान चलाने लगा.
उसकी चुत फिर से रस छोड़ने लगी.
मेरे लंड का फनफनाते हुए बुरा हाल हो चुका था.
मैं खड़ा हो गया और लंड को उसकी चुत पर घिसने लगा.
वह अपने मुँह को अपने हाथ से छुपाए पड़ी थी.
मैंने लंड को सैट करके चुत पर दबाया तो लंड अन्दर घुसने लगा.
उसकी चुत में अन्दर काफी चिकनाई थी; वह एक बार झड़ जो चुकी थी.
थोड़ा थोड़ा करके पूरा लंड अन्दर चला गया.
मैंने उसके एक चूचुक को मुँह में भर लिया और धक्का लगाना आरंभ कर दिया.
मेरा हर धक्का उसे हिला रहा था.
मैं कभी उसके होंठों को किस करता, कभी उसके चूचों के चूचुक को चूसने लगता.
कुछ पल की चुदाई के बाद मैंने उसकी दोनों टांगें ऊपर कर दीं और धकापेल चोदने लगा.
इस बार वह ऊपर को खिसकने लगी और आह आह करने लगी.
मेरे लंड की चोट उसकी चुत की पूरी गहराई तक लग रही थी.
मैं उसकी परवाह किए बगैर उसको पेले जा रहा था.
दस मिनट बाद मैंने उसे औंधा लिटा दिया और पीछे से उसकी चुत में अपना औजार घुसा दिया.
जैसे ही मैंने लंड अन्दर डाला, वैसे ही वह उठने लगी.
पर मैंने उस दबोच लिया और ठोकना चालू कर दिया.
ठप ठप की आवाज गूंज रही थी.
गाँव सेक्स में मुझे बड़ा मजा आ रहा था.
क्या उभरी हुई गांड थी भाभी की … और जोर जोर से चोदने का मन कर रहा था.
हर धक्के पर भाभी अ हं हं हं किए जा रही थी.
कुछ पल बाद भाभी के पैर कांपने लगे, मेरा भी काम होने को था.
हम दोनों साथ में झड़ने लगे.
झड़ने के बाद मैं भाभी के ऊपर ही लेट गया.
कुछ पल बाद मेरा लंड बाहर आ गया.
उसके साथ हमारा मिश्रित वीर्य भी उसकी जांघों से बहने लगा.
हम दोनों की धड़कने तेज थीं.
कुछ पल बाद दोनों की सांसें सौम्य हुईं.
मैंने अपने कपड़े पहने, उसने भी साड़ी पहनी.
फिर मैं उसके पास गया और उसको किस करके गले से लगाया.
एक बार उसे गोद में उठा भी लिया, फिर एक किस करके मैंने दरवाजा खोला, बाहर देखा … कोई नहीं था.
मैं चुपचाप बाहर निकल कर अपने कमरे में आ गया.
तब मैं सोचने लगा कि यह क्या मस्त माल मिल गया आज!
इसको पेला तो पहलवान की बीवी भी मिल सकती है.
अभी लोहा गर्म था तो मैंने हथौड़ा मार देने की ठान ली.
हॉट सेक्स गाँव की भाभी के साथ कहानी के अगले भाग में मैं आपको विस्तार में बताऊंगा कि उधर का मामला कैसे जमा … पड़ोस वाली मीनाक्षी भाभी की चुदाई की कहानी का मजा लिखूँगा.
धन्यवाद.
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